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एक तरफ BJP सरकार शाकाहार को प्रमोट कर रही है, वहीं दूसरी तरह इसी BJP के राज में भारत बीफ एक्सपोर्ट करने में नंबर बन चुका है: अंसार इमरान

बीफ के नाम पर बवाल और किसी का भी क़त्ल अब भारत में रोज की कहानी हो चुकी है. कथित गौ रक्षा के नाम पर अभी तक सैंकड़ों मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों की बलि ली जा चुकी है. शक के आधार पर किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को गौ रक्षा के नाम पर हत्यारी भीड़ द्वारा मार डाला जाता है।

ऐसे माहौल में यह जानना बेहद अहम हो चुका है कि आखिर भारत की ज्यादा आबादी क्या खाती है?क्या सच में भारत की ज्यादातर आबादी वेजीटेरियन है? क्या भारत की बहुसंख्यक आबादी मांस मछली से परहेज करती है?

एक दफा मुझे किराये का मकान चाहिये था तो मकान मालिक की पहली शर्त यह थी कि अगर आपको मकान चाहिए तो मांस मछली से परहेज करना होगा. आपकी तरह मुझे भी सुनने में बहुत अटपटा लगा था।

ये जानने से पहले की भारतियों की खानपान की आदतें कैसी है हमें ये जानना बेहद जरूरी है कि इस बात की जरूरत ही क्यों महसूस हुई है कि यह पता किया जाये कि कौन इंसान क्या खाता पीता है. जबकि यह तो किसी भी व्यक्ति का बिलकुल निजी मामला है कि वह क्या खाना पीना पसंद करता है।

मांस मछली की दुकानों को जबरन बंद करवाना

हमेशा यह देखने को मिलता है कि भगवाधारी गुंडे हिंदू धार्मिक त्योहारों के नाम पर मांस मछली की दुकानों को जबरदस्ती बंद करवाते हुए नज़र आ जाते है. नवरात्रे के दिनों में ऐसी घटनायें बड़े पैमाने पर होती है।

सोने पर सुहागा तो तब हुआ जब कुछ दिन पूर्व दिल्ली MCD के मेयर द्वारा एक दकियानूसी फरमान जारी करते हुये सभी मांस की दुकानों को नवरात्रों में बंद करने हुक्म जारी हुआ था. बवाल होने के बाद महोदय अपनी बात से पलट गए थे और MCD के अधिकारियों द्वारा ये कहा गया था कि उन्होंने ऐसा कोई भी फरमान जारी नहीं किया है।

इस मुद्दे का एक और पहलु यह भी है कि भारत में बीफ के नाम पर मुसलमानों की लिंचिंग का एक प्रचलन बन चुका है. जिसमें अफवाह फैला कर किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को शैतान का रूप धारण कर चुकी भीड़ द्वारा गौकशी के कथित आरोप में बुरी तरह मारपीट कर के मार डाला जाता है।

अगर The Print की साल 2019 की एक रिपोर्ट की माने तो 3 सालों में 44 लोगों को इस भगवाधारी हत्यारी भीड़ द्वारा मार डाला गया है. 2015 से 2018 के दरमियान इन आतंकियों द्वारा 100 हमले किये गए थे जिसमें 300 से ज्यादा निर्दोष लोग इनकी प्रताड़ना की वजह से जख्मी हुये थे. मौजूदा सत्ताधारी सरकार द्वारा कथित तौर पर शाकाहारी को बढ़ावा देना और कथित गौकशी कानूनों की आड़ में निहत्थे और निर्दोष नागरिकों की बलि चढ़ना बहुत सवाल पैदा करता है.

सत्ताधारी भाजपा और कथित गौ रक्षा

मौजूदा सत्ताधारी पार्टी भाजपा के सैंकड़ों नेता और विधायक हैं जिनका ऐसे मामलों का पुराना इतिहास रहा है. लोनी विधायक, नंद किशोर गुर्जर का अपने इलाके में मांस की दुकानों को जबरन बंद करने की ख़बरें आप आये दिन न्यूज़ में सुनते होंगे। पिछले साल अक्टूबर में इन विधायक महोदय ने एक-एक दुकान पर जाकर दुकानदारों से जबरन दुकान बंद करने का आदेश दिया था।

इसी पार्टी के कुछ प्रवक्ता ऐसे भी हैं जिनका काम केवल समाज में नफरत फैलाना है उन्होंने हाल में ही समुदाय विशेष से नफरत के नाम अपनी झटका बिरयानी की दुकानदारी भी शुरू की है.

कुछ दिन पहले जब भारत की क्रिकेट टीम की डाइट में हलाल मीट शामिल किया गया था तो जो हंगामा बरपा हुआ था उसकी मिसाल आज तक के इतिहास में नहीं मिलती है. भावना आहत गैंग और ट्रोल गैंग ने इस मामले में जिस कदर उधम काटा था वो गुंडागर्दी को खुली छूट की एक बड़ी उदाहरण है.

इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से गाय से संबंधित हिंसा में मारे गए लोगों में 86% मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते है. इसके अलावा मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ऐसे मामलों में 97% की बढ़ोतरी दर्ज़ की गयी है.

बीफ एक्सपोर्ट में भारत नंबर 1

अब जो मैं आपको बताऊंगा तो उसे सुन कर आपका भी रिएक्शन यही होगा “आखिर ये चल क्या रहा है”. जहाँ एक तरफ ये सरकार गौकशी पर कानून बना रही है और शाकाहारी को प्रमोट कर रही है वही दूसरी तरह इसी भाजपा के राज में भारत बीफ एक्सपोर्ट में पूरी दुनिया में नंबर बन चुका है.

‘द हिंदू’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में बीफ के सबसे बड़े निर्यातक के तौर पर भारत ने अपने शीर्ष स्‍थान को बरकरार रखा है। उसने ब्राजील के ऊपर भी बढ़त बना ली है। यूएस एग्रीकल्‍चर डिपार्टमेंट की ओर से जारी एक आंकड़े में भी इसका उल्‍लेख किया गया है।

रिपोर्ट के हवाले से इस आंकड़े के अनुसार, भारत ने वित्‍त वर्ष 2015 में 2.4 मिलियन टन बीफ (गोमांस) और वील (बछड़े का मांस) का निर्यात किया गया। जबकि ब्राजील ने इस वित्‍त वर्ष में 2 मिलियन टन का निर्यात किया। इसी अवधि में ऑस्‍ट्रेलिया ने 1.5 मिलियन टन बीफ का निर्यात किया। इन तीन देशों की ओर से किया जाने वाले बीफ निर्यात पूरी दुनिया के निर्यात का 58.7 फीसदी है। जिसमें से केवल भारत की निर्यात हिस्‍सेदारी 23.5 फीसदी है।

सभी बड़े बूचड़खानों के मालिक हिंदू

इससे भी आगे बढ़ कर एक बात सुनिये जहां पुरे देश में मुसलमानों को बीफ खाने के नाम पर बदनाम किया गया है वहीं भारत के लगभग सभी बड़े बूचड़खानों के मालिक हिंदू समुदाय के लोग हैं जो मुस्लिम जैसे लगने वाले अरबी नामों की कंपनियों के साथ सालाना लगभग 3680 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का कारोबार करते हैं.

अल कबीर मध्य पूर्व के चेयरमैन सुरेश सब्बरवाल ने BBC से कहा, “धर्म और व्यवसाय दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं और दोनों को एक दूसरे से मिला कर नहीं देखा जाना चाहिए। कोई हिंदू बीफ व्यवसाय में रहे या मुसलमान ब्याज पर पैसे देने के व्यवसाय में रहे तो क्या हर्ज़ है?” अल कबीर ने बीते साल लगभग 650 करोड़ रुपये का कुल व्यवसाय किया था।

महाराष्ट्र फूड्स प्रोसेसिंग एंड कोल्ड स्टोरेज के पार्टनर सन्नी खट्टर का भी यही मानना है कि धर्म और धंधा अलग अलग चीजें हैं और दोनों को मिलाना गलत है। वो कहते हैं, “मैं हिंदू हूं और बीफ व्यवसाय में हूं तो क्या हो गया? किसी हिंदू के इस व्यवसाय में होने में कोई बुराई नहीं है। मैं यह व्यवसाय कर कोई बुरा हिंदू नहीं बन गया।”

अब आते है असल मुद्दे पर क्या भारत सच में शाकाहारी देश है? यहां के लोगों की खानपान की आदतें क्या है?

इसके बारे में जानने के लिए हमें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 और भारत सरकार की जनगणना 2011 के आंकड़े देखने होंगे.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-2015-16 के अनुसार, देश में केवल 30 फीसदी महिलाएं और 22 फीसदी पुरूष, ऐसे हैं जो शाकाहारी भोजन खाते हैं। ये ऐसे लोग हैं कि जो मांस, मछली और अड्डे नहीं खाते हैं। सर्वे के अनुसार 2004-05 से 2015-16 के बीच में लोगों के खान-पान में कोई अहम बदलाव नहीं आया है।

जनगणना 2011 के आधार पर बनी बेसलाइन रिपोर्ट-2014 के अनुसार सबसे ज्यादा शाकाहारी लोग राजस्थान में हैं। जहां पर करीब 74 फीसदी आबादी शाकाहारी है। इसके बाद हरियाणा में करीब 69 फीसदी आबादी शाकाहारी है। हरियाणा के बाद पंजाब का नंबर आता है। यहां पर करीब 65 फीसदी लोग शाकाहारी हैं । इसी तरह गुजरात में 60 फीसदी लोग शाकाहारी हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सबसे ज्यादा लोग मांसाहारी हैं। यहां पर 98 फीसदी लोग मांसाहारी है। इसके बाद उड़ीसा, तमिलनाडु में 97 फीसदी से ज्यादा, केरल और झारखंड में 96 फीसदी, बिहार में 92-93 फीसदी लोग मांसाहारी हैं।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट की माने तो केंद्र सरकार आने वाले कुछ साल तक गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को शाकाहारी दिवस के रूप में मनाना चाहती थी। इसके लिए उसने एक प्रस्ताव तैयार करते हुए दो अक्टूबर 2018, 2019 और 2020 को गांधी जयंती के दिन ट्रेनों में केवल शाकाहारी खाना परोसने का प्लान बनाया था। हालांकि विवाद के बाद रेलवे ने फिलहाल इस प्रस्ताव को रोक दिया।

मौजूदा सरकार द्वारा शाकाहार को बढ़ावा

मौजूदा सरकार भले ही कई कारणों से देश में शाकाहार को प्रमोट कर रही हो, लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं। नेशनल हेल्थ डाटा के एक सर्वे के मुताबिक भारत के करीब 75 प्रतिशत लोग महीने में कभी ना कभी नॉन वेज आइटम्स खाते हैं।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक भारत के 80 प्रतिशत पुरूष और 70 प्रतिशत महिलाएं अपनी डाइट में कभी-कभी अंडा, मछली, चिकन और मीट जैसे आइटम को शामिल करते हैं।

नवंबर 2017 में सामने आई रिसर्च के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण और कुपोषण के बाद खाने में जरूरी मात्रा में न्यूट्रीशन्स नहीं होने की वजह से मौत और अपंगता की रिस्क बढ़ गई है।

नॉन वेज और भावना आहत गैंग

पिछले कुछ समय के दौरान मांस खाने को लेकर ‘भावनाएं आहत’ होने की घटनाओं से ऐसा लग सकता है कि भारत में मांसाहार का उपयोग न केवल असामान्य है बल्कि इसे खाना किसी अपराध के जैसा है.

2019-21 में किया गया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के नवीनतम चरण में बताया गया है कि तीन में से दो भारतीय मांसाहारी हैं.

राज्यवार आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि देश के उत्तरी और मध्य भागों में शाकाहार ज्यादा प्रचलित है और यहाँ भी कि महिलाओं की तुलना में मांसाहार का सेवन करने वाले पुरुषों की संख्या अधिक है.

एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते हैं कि औसतन केवल 23 फीसदी महिलाओं और 15 फीसदी पुरुषों ने कभी भी चिकन, मछली या मांस का सेवन नहीं किया है. इसका मतलब है कि भारत में हर चार में से तीन महिलाएं और छह में से पांच पुरुष मांस का सेवन करते हैं—चाहे दैनिक या साप्ताहिक आधार पर या फिर कभी-कभार.

शाकाहार अपनाने से भारतीयों में बीमारियां बढ़ी

डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक मांसाहार छोड़ शाकाहार अपनाने से भारतीयों में बीमारियां बढ़ी हैं.

भोजन में परिवर्तन के चलते अच्छी सेहत और लंबी उम्र के साथ ऊंचे कद, छरहरे बदन वाली नस्ल के तौर पर मशहूर भारतीय अब मोटापे और बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. आज 70 फीसदी भारतीय मांस, मछली या अंडे खाते तो हैं, लेकिन कभी-कभार या फिर बहुत कम।

हरित क्रांति के बाद हमारी फसलें अपने अधिकतर फाइबर तत्व खो चुके हैं। भोजन मुलायम और अधिक स्वादिष्ट हो गया है, यह बदलाव अभी भी जारी है। श्वेत क्रांति के बाद दूध की खपत बढ़ गई है, यह इकलौता पशु उत्पाद है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट होता है।

अब हम पालतू जानवरों का मांस भी खाते हैं और यह काफी महंगा होता है। 1900 के दशक में आक्रामक विज्ञापन के जरिये वसा की खपत को जानबूझकर कम किया गया था। इसमें इस विचार को फैलाया गया कि वसा सेहत के लिए ठीक नहीं है और कृषि उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बेहतर हैं।

शाकाहार अपनाने वाले भारतीय दिन में सिर्फ एक ही बार भोजन करते थे। वे महीने में कई दिन उपवास पर भी रहते थे और नाश्ता तक नहीं करते थे। अगर हम 100 ग्राम कच्ची दाल की तुलना 100 ग्राम कच्चे मांस से करें, तो दोनों में 20 ग्राम प्रोटीन होता है। लेकिन, 100 ग्राम कच्ची दाल में 46 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होगा, जो रक्त शर्करा में बदल जाता है और व्यक्ति को डायबिटीज का मरीज बना देता है। इसके विपरीत, 100 ग्राम कच्चे मांस में कार्बोहाड्रेट की मात्रा शून्य होती है। कार्बोहाइड्रेट की बढ़ी खपत ने भारत को दुनिया की “डायबिटीज कैपिटल” में बना दिया है।

47.97 लाख छात्रों में से 38.37 लाख ने अंडे को चुना

हाल ही में जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक मिड डे मील में बच्चों को सबसे ज्यादा अंडे पसंद आ रहे है. ऐसे बच्चों की गिनती 80 फीसदी से भी ज्यादा है. बच्चे केलों की तरफ झांकते भी नहीं हैं.

लोक शिक्षण विभाग (Department of Public Instruction) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 14 दिसंबर तक सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के 47.97 लाख छात्रों में से 38.37 लाख छात्रों ने अंडे, 3.37 लाख ने केले और 2.27 लाख ने चिक्की पसंद की।

इस मुद्दे पर भी राजनीती और भावना आहत गैंग ने अपना विकराल रूप एक बार फिर देखने को मिला है। The Hindu की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों की पहली पसंद के बावजूद कई स्कूलों में मिड डे मील में बच्चों को अंडे नहीं देते है.

80 करोड़ जनता मुफ्त सरकारी राशन पर

जिस देश में 80 करोड़ जनता मुफ्त सरकारी राशन पर गुजारा करती हो, जहां भारत गरीबी के मामले में नाइजीरिया को पछाड़ चुका है, भुखमरी के मामले में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का निम्नतम स्तर पर पहुंच चुका हो वहां अपने राजनीतिक हितों के लिए कुछ लोग बीफ के नाम पर आम लोगों का जीना हराम किये हुये हैं.

आज भी ये एक कटु सत्य है कि देश में ज्यादा आबादी अच्छे प्रोटीन युक्त भोजन के लिए मांस खास तौर पर बीफ पर निर्भर है. एक खास बात और कि सब्जी के मुकाबले बीफ आज भी आम लोगों के लिए सस्ता और किफायती भोजन है. भारत के 75 फीसदी आबादी के नॉन वेजीटेरियन होने के बावजूद भी जबरदस्ती शाकाहार का राग अलापना अपने आप में कई सवाल पैदा करता है.

निष्कर्ष

भारत जिसे विभिन्नताओं वाला देश कहा जाता है. जहां हर कुछ किलोमीटर के बाद खानपान बोलचाल में बदलाव आ जाता है. जिस देश की अधिकतर आबादी आज भी अपने दो वक्त के खाने के लिए दर ब दर ठोकरें खाती है. ऐसे देश में बीफ के नाम पर बवाल सिवाये राजनीतिक फायदों के और कुछ नहीं है.

अपनी नफरती इच्छाओं को पूरा करने के लिए भावना आहत गैंग जबरदस्ती देश को शाकाहारी बनाने की असफल कोशिश कर रही है. जबकि हकीकत तो यही है कि देश की अधिकतर आबादी मांसाहारी है.

बीफ के नाम पर लोगों का खूनी भीड़ द्वारा मारना और ऐसे अधिकतर मामलों के सरकारों का उदासीन रवैया मौजूदा सरकार की मौन सहमति की तरफ इशारा करता है. भारतवर्ष की खूबसूरती यही मल्टी कल्चरल समाज है. जिस पर गिद्धों ने अपनी बुरी नज़र गड़ा रखी है जिसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करना देश की इस खूबसूरती को बचाने की हमारी तरफ से एक कोशिश होगी.

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक अंसार इमरान पत्रकार एवं सोशल एक्टिविस्ट हैं)

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