शिमला के संजोली स्थित जिस मस्जिद को अवैध बताया जा रहा है उस मस्जिद का निर्माण 18वीं सदि में हुआ था. आबादी बढ़ी तो 2007-12 में इस मस्जिद का पुनिर्माण कराया गया।
2012 से अगस्त 2024 तक इस मस्जिद से किसी को कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन सितंबर 2024 में जैसे ही ख़बर आई कि राज्य की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, उसके कुछ दिन बाद ही संजोली में मस्जिद के विरोध में हिंदूवादियों की भीड़ उतर आई।
मुसलमानों के ख़िलाफ नारेबाज़ी, मस्जिद के ख़िलाफ नारेबाज़ी करते हुए मस्जिद को अवैध बताया जाने लगा। अवैध का मतलब यह नहीं कि मस्जिद सरकारी अथवा किसी और की ज़मीन पर बनी है, बल्कि अवैध की वजह मस्जिद का नक्शा पास ना होना बताई जा रही है। अगर ऐसा है! तो आधे से ज्यादा शिमला अवैध ही है, क्योंकि बिना नक्शा पास कराए ही मकानों का निर्माण कराया गया है।
लेकिन क्या कहें? क्या करें? जब मौहब्बत की दुकान खोलने का दावा करने वाले राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस के कई नेता/मंत्री ह्वाटसप ‘विषद्यालय’ का ज़हर समाज में फैलाना शुरू कर दें?
हिमाचल में सुखविंदर सिंह सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने के बाद से मुसलमान निशाने पर हैं। ईद उल अज़हा के मौक़े पर ह्वाटसप पर लगे कुर्बानी के स्टेटस को मुद्दा बनाकर मुसलमानों की दुकानें लूटी गईं, लेकिन लूटने वालों पर कोई कार्रावाई नहीं की गई।
अब हिमाचल सरकार के मंत्री वैसी ही भाषा बोल रहे हैं जैसी भाषा भाजपा के मुस्लिम विरोधी ट्रोल बोलते हैं। भारत सरकार के अनुसार पूरे देश में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 42 हजार है। लेकिन ऐसा हौवा खड़ा किया जा रहा है मानो इस देश में हर जगह रोहिंग्या रहते हों।
वास्तविकता यह है कि ऐसे छद्म राष्ट्रवादी प्रवासी मजदूरों का शुमार भी रोहिंग्या में कर रहे हैं। और यह किसी बीमारी से कम नहीं।
(यह लेख पत्रकार वसीम अकरम त्यागी ने लिखा है✍️)