गोधरा नरसंहार के दूसरे दिन 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में सैकड़ों मुसलमान मारे गए थे। उन सैकड़ों लोगों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री भी शामिल थे।
गुजरात नरसंहार के दो साल बाद 2004 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन कांग्रेस ने सरकार बनने के बाद गुजरात नरसंहार को बिल्कुल नॉर्मलाइज़ कर दिया, बाक़ी को तो छोड़िए उस नरसंहार के बाद दस साल केंद्र में शासन करने वाली कांग्रेस ने अपने सांसद एहसान जाफ़री तक को इंसाफ़ नही दिलवा पाई।
एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री आज भी अपने शौहर के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ रही हैं और दर-दर की ठोकरें खा रही हैं।
लेकिन आजतक एहसान जाफ़री पर एक ट्वीट ना करने वाले कांग्रेसी क्रांतिकारी कुछ दिन से ट्विटर पर आज़म ख़ान के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ रहे हैं। और इस आड़ में वो अखिलेश यादव को मुस्लिम विरोधी साबित करने की कोशिश में लगे हुए हैं। जैसे ये ख़ुद मुसलमानों के कितने बड़े हितैषी और हमदर्द हों। हमारे नज़दीक तो सब ही साबित हैं।
ख़ैर मरियल हो चुकी कांग्रेस के पास और कुछ बाक़ी नही रह गया है, बस आज़म ख़ान एक मौक़ा है जिसको कांग्रेसी भुना रहे हैं।
डियर कांग्रेसी क्रांतिकारियों तुम लोग एहसान जाफ़री की लड़ाई लड़ो बाक़ी साईकिल पंचर करने की पूरी कोशिश में हम लगे हुए हैं। चूंकि पंक्चर बनाने में हम एक्सपर्ट भी हैं।
(यह लेखक के अपने विचार है लेखक शाहनवाज अंसारी सोशल एक्टीविस्ट है)