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सम्पादकीय

बिहार में 3-4 फ़ीसद मल्लाह जाति की क़यादत करने वाला मुकेश साहनी सरकार में शामिल है, लेकिन 17-18 फ़ीसद आबादी के बावजूद मुसलमानों की अपनी कोई लीडरशिप नहीं है

आज़ादी के बाद से लेकर अबतक सियासी सेक्युलरिज़्म पे जितना यक़ीन मुसलमानों ने किया शायद ही हिन्दोस्तान की कोई दूसरी कम्युनिटी ने की होगी। यही यक़ीन मुसलमानों को दीमक की तरह खा गया।

इसी सियासी सेक्युलरिज़्म पे यक़ीन की वजह से मुसलमानों ने कभी अपनी पॉलिटिकल एम्पावरमेंट के बारे में नहीं सोचा।

मुसलमानों ने कभी बार्गेनिंग की पॉलिटिक्स नहीं किया। मुसलमान हमेशा नफ़रत को हराने, गंगा जमुनी तहज़ीब को बचाने और हिन्दू मुस्लिम एकता के नाम पे सिर्फ़ वोट करता आया। जबकि आज देश में खुलेआम बार्गेनिंग की पॉलिटिक्स होती रही है। सीधे-सीधे डिमांड किया जाता रहा है कि मेरी कम्युनिटी का वोट चाहते हो तो मुझे फ़लां मंत्रालय, रिज़र्वेशन, फ़लां-फ़लां दो वरना मेरी कम्युनिटी का वोट भूल जाओ और वो कामयाब भी हैं। ये काम सिवाए मुसलमानों के हर इलाक़ाई पार्टियों ने किया और कर रही हैं। बावजूद इसके कठघड़े में मुसलमान खड़ा है। तमाम इल्ज़ामात मुसलमानों पे है।

वही बार्गेनिंग की पॉलिटिक्स अब ओवैसी कर रहा है तो इनको तकलीफ़ हो रही है। जिन मुसलमानों ने पिछले सत्तर सालों से बिना किसी सियासी मुफ़ाद के वोट किया वो अब बार्गेनिंग की बात करेंगे तो ज़ाहिर है तकलीफ़ होगी ही।

यूपी में सपा का आरएलडी से गठबंधन बार्गेनिंग है। ओम प्रकाश राजभर से गठबंधन बार्गेनिंग है। बिहार में 3/4 सीट जीतने वाले जीतन राम मांझी और मुकेश साहनी बात बात पे नीतीश कुमार को धमकी देते रहते हैं सरकार गिराने की यही बार्गेनिंग है भाई। जीतन राम मांझी ऑन कैमरा श्रीराम का अपमान और ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ बयान देने के बाद अबतक महफ़ूज़ है। ये भी बार्गेनिंग है। नीतीश/बीजेपी में हिम्मत नहीं है मांझी पे हाथ लगा दे। क्योंकि बीजेपी को सत्ता में रहना है और बीजेपी के लिए धर्म/श्रीराम महज़ सियासी टूल्स हैं। आस्था से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है। (जबकि मांझी का बयान निहायत ही घटिया था। किसी भी दीन/धर्म के खुदाओं के बारे में ऐसे बेहूदे बयान क़त्तई क़ाबिल-ए-क़बूल नहीं होने चाहिए)

बिहार में 3-4 फ़ीसद मल्लाह जाति की क़यादत करने वाला मुकेश साहनी सरकार में शामिल है। लेकिन उसी बिहार में 17-18 फ़ीसद आबादी के बावजूद मुसलमानों की अपनी कोई लीडरशिप नहीं है।

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी मुस्लिम एक्टिविस्ट हैं)

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