नेली मुस्लिम नरसंहार और सिख नरसंहार में महज़ कुछ ही महीनों का फ़र्क़ था। जब असम (नेली) में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था तब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी और जब सिख नरसंहार हुआ था तब देश का प्रधानमंत्री राजीव गांधी था।
फ़रवरी 1983 के कुछ ही महीने बाद असम में इलेक्शन होने वाला था। इस इलेक्शन का बहिष्कार करने का ऐलान हिन्दू/आदिवासियों ने किया था। लेकिन असम के नेली इलाक़े के मुसलमानों ने बहिष्कार करने से इंकार कर दिया था। उसके बाद मुसलमानों की उस पूरी नेली बस्ती को हिन्दू/आदिवासियों ने घेर लिया और एक एक घर को आग लगाना शुरू किया।
नेली और आस-पास में कोई ऐसा घर नहीं था जो लाशों से ख़ाली रहा हो। दर्जनों घर ऐसे थे जिस घर में चिराग़ जलाने वाला भी कोई बचा नहीं था। नेली की आग धीरे धीरे चारों तरफ़ फैलने लगी थी। हर तरफ़ मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम हो रहा था। इस नरसंहार में दस हज़ार से ज़्यादह मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम हुआ था।
चश्मदीदों का कहना है- “जब हमारी बस्तियों पे गोली, बारूद, तीरों से हमला शुरू हुआ था तब पुलिस/फ़ोर्स कुछ घण्टों के लिए जाने कहां ग़ायब हो गयी थी”
तक़रीबन सात घंटों तक मुसलमानों की बस्तियों को घेरकर उनपे हमला होता रहा। पुलिस/फ़ोर्स ग़ायब रही और इन सात घण्टों कई हज़ार मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम हो गया। लेकिन सवाल ये है कि जिस तरह सिख नरसंहार को याद किया जाता है वैसे नेली नरसंहार को याद क्यों नहीं किया जाता?
जिस तरह पूरी कांग्रेस सिख नरसंहार के लिए माफ़ी मांग चुकी है। वैसे ही कांग्रेस ने आज़ाद भारत के सबसे बड़े मुस्लिम नरसंहार के लिए कभी माफ़ी क्यों नहीं मांगी? मुसलमान नेली नरसंहार को क्यों भूल गया? क्या इसलिए कि ये सब कुछ कांग्रेस की निगरानी में हुआ था? मैं लिखना नहीं चाहता हूं फिर भी लिख रहा हूँ।
कुछ लोग कहते हैं। आज़म ख़ान जेल में हैं लेकिन उनका परिवार तो सपा के साथ है और ये कहके हंसते हैं। शहाबुद्दीन साहब की मौत के बाद जब हमने राजद पे सवाल खड़ा किया था तब भी यही कहा गया था कि उनका परिवार तो राजद के साथ है फिर आप लोगों को दिक़्क़त क्यों है?
ऐसी दर्जनों मिसालें हैं। जो लोग ऐसी बेतुकी बातें करते हैं उन्हें ये जान लेना चाहिए कि असम का मुसलमान आज भी कांग्रेस को वोट करता है। तो क्या नेली नरसंहार से कांग्रेस को बरी कर दिया जाए?
(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी मुस्लिम एक्टिविस्ट हैं)