रज़ा एकेडमी के आठ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने अल्हाज मुहम्मद सईद नूरी के नेतृत्व में ‘अजमेर 92’ फिल्म पर पाबंदी की मांग को लेकर अजमेर पुलिस अधीक्षक चूना राम जाट को ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन में कहा गया कि फिल्म के पोस्टर और उसकी कहानी को तोड़-मरोड़ कर 1992 की बलात्कार की घटना से न केवल जोड़ा गया बल्कि इसके जरिये सिर्फ चिश्ती परिवार को ही नहीं बल्कि सीधे तौर पर हज़रत सुल्तान-उल-हिंद को निशाना बनाना है. ताकि बहुसंख्यक संप्रदाय के बीच ग़रीब नवाज़ को बदनाम किया जा सके।
इस मौके पर अल्हाज मुहम्मद सईद नूरी साहब ने कहा कि गरीब नवाज़ के आस्ताने से सभी धर्मों के लोगों का संबंध है, सूफियों के यहां जाति और धर्म का कोई विभाजन नहीं है. इसलिए अजमेर 92 फिल्म को दरगाह शरीफ से जोड़ना सूफीवाद का अपमान है।
उन्होने कहा कि इस फिल्म से दरगाह अजमेर शरीफ और चिश्तिया सिलसिले से जुड़े सभी पात्रों को हटाया जाए, नहीं तो कड़ा विरोध होगा. उन्होने कहा कि हमने पहले भी ऐसे मामले देखे हैं जहां विवादास्पद फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया गया है।
पिछले कुछ वर्षों में, राजस्थान के राजपूतों ने खुद फिल्म पद्मावती का विरोध किया, जिसके कारण फिल्म का नाम बदलना पड़ा।
नूरी साहब ने कहा कि सभी जायरिनों से भी पुरज़ोर मांग है कि दरगाह शरीफ और तमाम चिश्ती लोगों को अजमेर 92 फिल्म से न जोड़ा जाए बल्कि जो भी दोषी हो उसे उसके अपराध की सजा दी जाए. वैसे भी दोषी करार दिए गए सभी आरोपी कोर्ट के आदेश पर जमानत पर छूटे हुए हैं. इस मामले में दरगाह का कोई सबंध नहीं है।