Journo Mirror
भारत

मुसलमान क्यों मनाते हैं ईद उल अज़हा (बकरीद): मुफ्ती मुहम्मद थानवी

दुनिया भर में हर कौम अपनी ईद क्यों मनाती है, इसकी बुनियादी हकीकत यही है कि जो कौम जिस फिक्र और नज़रिए के साथ जुड़ी होती है उस फिक्र और नज़रिए की जो बुनियादी शख्सियत या उस कौम का दुनिया में आगाज़ करने वाला जो इंसान होता है उसकी याद के तौर पर ईद का दिन मनाया जाता है।

मुसलमान भी साल भर में दो ईद मनाते हैं जिन में से ईद उल अज़हा जिसको बकरईद भी कहते हैं, इस ईद की हकीकत यह है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जिनको मुस्लिम ही नहीं यहूदी और ईसाई भी एक बड़ी शख्सियत मानते हैं उन्हीं की याद और पैरवी में मुस्लिम कौम यह ईद मनाती हैं।

जिसकी थोड़ी सी झलक यह हैं कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम चांद के बारहवें महीने की 8 तारीख को यह ख्वाब देखते है कि वह अपने बेटे को जिब्ह कर रहे हैं और यह अजीब ख्वाब था कि इंसान इंसान को जिब्ह कर रहा है।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दिल बड़ा परेशान होता है कि पता नहीं यह यह धोखा है या कुछ और – यही ख्वाब जो पहले धुंधला सा ख्याल था अराफात के मैदान में पुरी मारिफ़त के साथ इलहाम होता है और उन्हें मुकम्मल यकीन हो जाता है कि यह सिर्फ शैतानी ख्याल नहीं बल्कि खुदाई हुक्म है।

चांद के बारहवें महीने की 10 तारीख को अपने बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम को दुर दराज़ जगह ले जाते है और खुदाई हुक्म को पुरा करने के लिए बेटे के गले पर छुरी फेरते हैं तीन बार कोशिश करते हैं हर बार नाकामी हासिल होती है पर खुदाई यह हुक्म सिर्फ आज़माना था कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने महबूब और दिल के करीब चीज़ को मेरे हुक्म पर कुर्बान करते हैं या नहीं।

जिस पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम खरे उतरते हैं अल्लाह तआला जन्नत से एक मेंढ़ा उतारते हैं जिसको हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जिब्ह करते हैं उसी अजी़म कुर्बानी की याद में मुसलमान ईद उल अज़हा मनाते हैं और कुर्बानी करते हैं, ईद उल अज़हा के दिन मुसलमान दो रकअत नमाज़ भी अदा करते हैं और एक होने का सबुत देते हैं।

(यह लेख मुफ्ती मुहम्मद थानवी ने लिखा हैं मुफ्ती साहब मदरसा दारुल आरिफीन मौहल्ला कस्साबान थाना भवन से ताल्लुक रखते हैं)

Related posts

Leave a Comment