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कर्नाटक की राजनीती में क्यों घट रहीं हैं मुसलमानों की भागीदारी, जानिए विस्तार से

राजनीति जिसका असर देश और समाज पर बहुत खतरनाक सतह पर पड़ता है उसमें अगर किसी समुदाय की कम भागीदारी होगी तो यकीनन उस समुदाय के लिए सामाजिक और राजनीतिक तौर पर बहुत मुश्किलें पेश आती हैं जहां पूरे देश में लोकसभा की बात करें या राज्यसभा की चाहे विधानसभाओं की बात करें सब जगह पर मुस्लिम समुदाय का राजनीतिक तौर पर घटता हुआ प्रतिनिधित्व अपने आप में चिंताजनक बात है फिलहाल के लिए हम लोग कर्नाटका की बात करेंगे जहां पर हालिया समय में विधानसभा चुनाव हुए हैं और कांग्रेस बहुमत के साथ जीत कर आई है।

इस चुनाव में अगर वोटिंग पैटर्न को देखेंगे तो मुसलमानों ने एकतरफा तौर पर कांग्रेस को वोट दिया है यहां तक कि जेडीएस को भी बहुत कम वोटिंग मुसलमानों द्वारा की गई है अगर कर्नाटका की 224 विधानसभाओं की बात करें इनमें से 40 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिस पर मुसलमानों का बहुत प्रभाव है।

यूं तो मुसलमान पूरे कर्नाटका में ही अच्छी खासी तादाद में पाए जाते हैं मगर जिन जिलों में मुसलमानों की ज्यादा गिनती रहती है उसमें गुलबर्गा, बीदर, बीजापुर, रायचूर और धारवाड़ अहम है गुलबर्गा उत्तर पुलकेशी नगर शिवाजी नगर जयानगर तुमकुर चामराजपेट ऐसी विधानसभा सीटें हैं जिन पर मुसलमानों का प्रभाव सबसे ज्यादा है।

रिजर्वेशन

राजनीतिक तौर पर भी बात करेंगे तो आपको समझ में आएगा कि जिस समुदाय के पास प्रदेश की राजनीति में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी हैं वोक्कालिगा और लिंगायत उसी को मुसलमानों के हिस्से के रिजर्वेशन को देने की घोषणा उस समय की सत्ताधारी पार्टी भाजपा द्वारा की जाती है जो समुदाय पहले से ही राजनीतिक और सामाजिक तौर पर बहुत मजबूत है उसको रिजर्वेशन वह भी मुसलमानों से छीन कर देना अपने आप में बहुत चिंताजनक है मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को देखते हुए जरूरत तो इस बात की है मुसलमानों को शिक्षा और राजनीति दोनों जगह पर रिजर्वेशन दिया जाए।

थोड़ा और माइक्रो लेवल पर बात करेंगे तो आपको समझ में आएगा की प्रदेश की 65 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम वोट 20 परसेंट से ज्यादा है और 45 सीटें ऐसी हैं जहां पर माइनॉरिटी का वोट 10 से 20 परसेंट है ऐसे हालात में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुसलमानों को राजनीतिक हिस्सेदारी उनकी आबादी के हिसाब से देने को लेकर मामला बहुत गड़बड़ चल रहा है.

अगर राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुसलमानों को विधानसभा चुनाव में टिकट देने की बात करें तो हालिया संपन्न हुए चुनाव में कांग्रेस ने 15 ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था और जेडीएस ने 21 उम्मीदवारों को टिकट दिया था जो कि मुसलमानों की 13% आबादी के हिसाब से बहुत ही कम है और अभी के चुने हुए विधायकों की बात करें तो केवल 9 विधायक मुस्लिम चुनकर आए हैं जिनका विधानसभा में 4 परसेंट होता है और मुसलमानों की आबादी 13 परसेंट है. मुस्लिमों की 13% आबादी के हिसाब से 29 मुस्लिम विधायकों को चुनकर आना था।

भाजपा का मुस्लिम पसमांदा प्रेम

भाजपा जो तथाकथित तौर पर पसमांदा मुसलमानों को सबका साथ सबका विकास का नारा देती है उसे अपनी चुनाव में मुसलमानों की हिस्सेदारी बिल्कुल भी पसंद नहीं इसी वजह से भाजपा की तरफ से कर्नाटका में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दी गई थी जहां तक बात कांग्रेस या जेडीएस की करें जो इन सेकुलर पार्टियों की तरफ से भी बहुत ज्यादा हिस्सेदारी मुस्लिम उम्मीदवारों को नहीं दी जाती है.

मुस्लिम केंद्रित विधानसभाओं तक ही सीमित

यहां पर एक अहम सवाल और भी उभर कर आता हूं कि अगर दूसरे समुदाय किसी भी इलाके से चुनाव लड़ सकते हैं या उनको राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव लड़ पाया जाता है ऐसा क्यों है कि मुसलमानों को केवल मुस्लिम केंद्रित विधानसभाओं तक ही सीमित रखा जाता है और उसमें भी अक्सर देखने को मिलता है कि किसी दूसरे जाति के व्यक्ति को टिकट दे दिया जाता है.

साल 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव और मुस्लिम उम्मीदवार

ज्ञात हो की 2018 के कर्णाटक विधानसभा चुनाव में सेक्युलर पार्टी कांग्रेस ने 17 मुस्लिम्स उम्मीदवार और जनता दल ने केवल आठ ही मुस्लिम उमीदवारों को टिकट दिया था. जिनमे केवल सात मुस्लिम उमीदवार ही विजयी हो पाए थे.

कर्नाटक विधानसभा में किस साल कितने मुसलमान उमीदवार विजयी होकर आये:

1952 – 5
1957 – 9
1962 – 7
1967 – 6
1972 – 12
1978 – 16 (+1 by-poll) = 17
1983 – 2
1985 – 8
1989 – 11
1994 – 6
1999 – 12
2004 – 6
2008 – 9
2013 – 11
2018 – 7

किस जिले में कितनी मुस्लिम आबादी

सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज (2011) के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य के दक्षिण कन्नड़ जिले में सबसे ज्यादा 24.02 फीसदी मुस्लिम हैं। वहीं, धारवाड़ में 20.94 फीसदी, गुलबर्ग में 19.99 फीसदी, बीदर में 19.68 फीसदी, हवेरी में 18.65 फीसदी, कोडागु में 15.74 फीसदी, उत्तर कन्नड़ जिले में 13.08 फीसदी, चिकबल्लापुरा में 11.78 फीसदी, कोलार में 13.01 फीसदी, रामनगर में 10.56 फीसदी, बेंगलुरु में 12.97 फीसदी, शिमोगा में 13.39 फीसदी, बलारी में 13.08 फीसदी, कोप्पल में 11.64 फीसदी, गडक में 13.50 फीसदी, देवनागेरे 13.66 फीसदी, बीजापुर में 16.97 फीसदी, यादगीर में 13.23 फीसदी, रायचूर में 14.10 फीसदी, बेलगांव में 11.06 फीसदी, बगलकोट में 11.64 फीसदी, उडुपी में 8.22 फीसदी, चिकमंगलूर में 8.90 फीसदी, चित्रदुर्ग में 7.76 फीसदी, तुमकुर में 9.18 फीसदी, हासन में 6.76 फीसदी, मैसूर में 9.68 फीसदी, चमाराजानगर में 4.62 फीसदी मुस्लिम हैं।

40 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का सीधा असर

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य में 65 सीटों पर 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं 45 ऐसी सीटें हैं जहां 10 से 20 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं।

उदाहरण

कुछ उदाहरणों के साथ आप इस मुद्दे को और आसानी से समझ सकते हैं खुला शहर में मुसलमानों की आबादी है 46 फ़ीसदी मगर यहां से विधायक हमेशा किसी दूसरे समुदाय का बनता है यहां तक कि कांग्रेस के सिद्धारमैया भी इसी सीट से चुनाव लड़ने के सबसे ज्यादा ख्वाहिश रखते हैं अब खुद अंदाजा लगाइए कि लगभग आधी आबादी मुस्लिम होने के बावजूद भी यहां पर आखिरी मुस्लिम विधायक 1989 में के ए निसार अहमद थे क्या इसी प्रकार यहां की सेक्युलर पार्टियां मुसलमानों को राजनीतिक हिस्सेदारी देंगे?

एक और उदाहरण देखिए बीजापुर शहर की सीट पर जेडीएस में रहे बीपी यत्नल भाजपा की तरफ से चुनाव जीत जाते हैं 2018 में जबकि बीजापुर शहर में मुसलमानों की आबादी 37 परसेंट है मगर इसके बावजूद सेकुलर होने का दम भरने वाली जेडीएस को यहां पर एक भी मुस्लिम कैंडिडेट नहीं मिलता है जिसको चुनाव के लिए खड़ा किया जा सके

मुस्लिम पार्टियों की बात

अगर आप मुस्लिम पार्टियों की बात करेंगे तो उन पार्टियों का भी पूरा का पूरा वजूद मुस्लिम केंद्रित सीटों पर ही है।

अगर इस बार के चुनाव की बात करें तो 9 मुस्लिम विधायक जीत कर आए हैं कांग्रेस की तरफ से रहीम खान ने वेदर विधानसभा से चुनाव जीता है यूपी खाद्य ने बेंगलुरु से चुनाव जीता है तनवीर चाटने नरसिम्हा राजा सीट से चुनाव जीता है रिजवान अरशद ने शिवाजी नगर से चुनाव जीता है जमीर अहमद ने चामराजपेट सीट से चुनाव में जीत हासिल की इकबाल हुसैन ने रमन ग्राम से चुनाव जीता है औरैने हरीश ने शांति नगर और कनीज फातिमा ने गुलबर्गा उत्तर से चुनाव जीता है.

क्यों हिन्दू बहुल इलाके से केवल हिन्दू कैंडिडेट को ही टिकेट दिया जाता है?

हम अक्सर देखते हैं और ये अब आम बात हो गयी है की हिन्दू बहुल इलाकों से सेकुलर पार्टियाँ हमेशा हिन्दू कैंडिडेट को टिकेट देती हैं. आखिर क्यों ये पार्टियाँ हिन्दू बहुल इलाकों से किसी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट क्यों नहीं देती?

लोकतंत्र में मुस्लिम लॉमेकर्स का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिए

कर्णाटक बेस्ड पत्रकार सय्यद तनवीर अहमद ने साल 2018 में स्क्रॉल को इंटरव्यू देते हुए कहा की “विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व में गिरावट चिंता का कारण है।” “राजनीतिक दलों को लोकतंत्र में मुस्लिम लॉमेकर्स का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिए। यह समुदाय की भलाई के लिए आवश्यक है.”

आगे पत्रकार अहमद कहते ने कहा कि मुसलमान, जो की कर्णाटक की आबादी का 13% हिस्सा हैं, राजनीतिक दलों से बेहतर सौदे के हकदार हैं। उन्होंने कहा, “राजनीतिक दलों को अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारना चाहिए।”

आगे स्क्रॉल से बात करते हुए मैसूर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मुजफ्फर असदी ने बताया कि क्यों आखिर राजनीतिक दल मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से हिचकते हैं. “राजनीतिक दल अक्सर मानते हैं कि मुस्लिम वोट आकर्षित नहीं करते हैं। मतदाता मुस्लिम उम्मीदवारों को संदेह की दृष्टि से देखते हैं और इससे उनके जीतने की संभावना कम हो जाती है।

मुस्लिम राजनीती और लिंगायत

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मुस्लिम 21 विधानसभा क्षेत्रों में जीत सकते हैं और राज्य भर में बड़ी संख्या में सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

सेवानिवृत्त प्रोफेसर और अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव डॉ चमन फरजाना ने आईएएनएस को बताया कि राज्य में एससी/एसटी समुदायों के बाद मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है। लिंगायत, वोक्कालिगा और कुरुबा समुदायों की तुलना में उनकी संख्या अधिक है।

लिंगायत कांग्रेस से 71 सीटों पर टिकट मांग रहे हैं। बीजेपी किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देने पर विचार भी नहीं करेगी और कोई भी अन्य पार्टी आम तौर पर मुस्लिम उम्मीदवारों पर विचार नहीं कर रही है. वे कुछ नहीं कर सकते क्योंकि भाजपा ने समाज का ध्रुवीकरण कर दिया है।

निष्कर्ष
अब आखिर में इस पूरी बहस का निष्कर्ष यही निकलता है कि मुसलमान वैसे ही राजनीतिक और सामाजिक तौर पर बहुत पीछे हैं अगर उनको सेकुलर होने का दम भरने वाली सेकुलर पार्टियों द्वारा राजनीतिक तौर पर हिस्सेदारी के लिए उनकी जनसंख्या के हिसाब से टिकट नहीं दिया जाएगा तो वह दिन-ब-दिन विधानसभा की बात करें या लोकसभा शब्द जगह पर उनकी हिस्सेदारी या भागीदारी कम होती जाएगी और एक टाइम ऐसा भी आएगा जब मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर डाल दिया जाएगा तो इस वक्त जरूरत यह है कि मुस्लिम समुदाय और पूरे भारतीय समाज को मुसलमानों की भागीदारी खास तौर पर राजनीतिक तौर पर उनकी आबादी के हिसाब से हो यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेशर पॉलिटिक्स करने की बेहद सख्त जरूरत है।

(यह लेख अंसार इमरान एस आर ने लिखा हैं, लेखक पत्रकार एवं सोशल एक्टिविस्ट हैं)

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