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हिमांशी और सरताज इस देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के ब्रांड अंबेसडर होने चाहिए: वसीम अकरम त्यागी

पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल को हर वह भारतीय सैल्यूट कर रहा है, जिसे इस देश की एकता, अखंडता, विविधता सौहार्द से प्यार है।

पहलगाम आतंकी हमले में अपना जीवन साथी गंवाने वाली हिमांशी ने पत्रकारो से कहा था कि, “हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के ख़िलाफ़ जाएं। हम शांति चाहते हैं और केवल शांति. बेशक, हम न्याय चाहते हैं, जिन्होंने ग़लत किया है उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए।” उनके इस बयान ने आतंकियों के मंसूबे ध्वस्त करने का काम किया है। अपनी दुनिया उजड़ जाने के बावजूद उन्हें अपने देश की फिक्र है। उन्हें अपने देश की एकता, अखंडता और आपसी सौहार्द को बचाए रखने की ज़िम्मेदारी का अहसास है।

देश के प्रति ज़िम्मेदारी का ऐसा ही अहसास सरताज को भी है। अब सवाल है कि सरताज कौन? जिसका सीधा सा जवाब है कि सरताज इस देश के ‘अख़लाक़’ का बेटा है। सरताज वायु सेना में है। वह यूपी के नोएडा के बिसहाड़ा गांव का निवासी है। दस साल पहले 28 अप्रैल 2015 को सरताज के पिता अख़लाक़ अपने घर पर ही थे। एक रोज़ पहले ही उन्होंने ईद-उल-अज़हा का त्यौहार मनाया था। वो अपने वतन, अपने गांव, अपने घर में खुश थे।

लेकिन उन्हें यह अहसास ही नहीं था कि एक गैंग ने इस देश की एकता, अखंडता, भाईचारगी को मिटाने की कसम खाई हुई है। अख़लाक़ अपने घर पर थे, कि अचानक गांव के मंदिर से एलान हुआ कि अखलाक ने गौवंश को मारा है। बस फिर क्या था एक दर्जन के क़रीब आतंकियों ने अख़लाक़ के घर पर हमला कर दिया। आतंकियों ने अख़लाक़ को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया।

अख़लाक़ के बेटे दानिश को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। अख़लाक़ की बूढ़ी मां के मुँह पर आतंकियों ने चांटे मारे। अख़लाक़ को उनके ही गांव, उनके ही घर में शहीद कर दिया गया। अख़लाक़ के फौजी बेटे से जब इस घटना के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, चंद खराब लोगों की वजह से पूरे समुदाय को क्रिमनलाइज़ नहीं किया जा सकता। और फिर उन्होंने वह कहा जिसकी उम्मीद शायद ही किसी ने की होगी।

सरताज ने कहा कि हर किसी को इस पर अमल करना चाहिए- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा

सोचिए! आतंकियों द्वारा अपने पिता की हत्या किये जाने के बावजूद अपने भाई को अधमरा देखने के बावजूद सरताज ने किसी समाज के खिलाफ किसी धर्म के लोगों के खिलाफ ज़हर नहीं उगला, किसी समुदाय को कठघरे में खड़ा नहीं किया।

सरताज ने एक फौजी होने की ज़िम्मेदारी एक सच्चा भारतीय नागरिक होने की ज़िम्मेदारी से एक पल के लिए भी खुद को आज़ाद नहीं किया। सोचिए! ऐसा माद्दा, ऐसा सब्र किसके अंदर होता है! जिसे इस देश से मोहब्बत है, वही ऐसा जज़्बा ऐसा हौसला रखता है। वरना जिनके अंदर सांप्रदायिकता है, नफ़रत है, कुंठा है वो तो समाज में हिंसा करने के बहाने ढूंढ़ते फिरते हैं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी अराजक तत्वों ने ऐसा ही किया है।

जगह-जगह मुसलमानों और कश्मीरियों के साथ हिंसा की गई है। ऐसा करने वाले तत्वों ने इस हमले में शहीद हुए विनय नरवाल की पत्नी की अपील को भी नज़र अंदाज़ किया है।

आज देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती सांप्रदायिक नफ़रत है। राजनीतिक मंचो से फैलाई जा रही नफ़रत और टीवी चैनल्स के ज़हर फैलाते एंकर्स को सरताज और हिमांशी नरवाल जैसे बहादुर लोग ही जवाब दे सकते हैं।

हालांकि मौजूदा दौर में आपसी सौहार्द और भाईचारगी की बातें करने वाले लोग मज़ाक का पर्याय बन रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद जागरुक समाज को चाहिए कि हिमांशी नरवाल और सरताज को आपसी सौहार्द और वतनपरस्ती के पोस्टर फेस बनाए। समाज में बढ़ती नफरत और समुदायों में चौड़ी होती नफ़रत की खाई को यही लोग पाट सकते हैं। मेरा बस चलता सरताज और हिमांशी को इस देश के उन मज़लूमों से मिलवाते जिनके अपने नफ़रत का निवाला बने हैं।

हिमांशी और सरताज इस देश में हिंदू मुस्लिम एकता के ब्रांड अंबेसडर होने चाहिए। दोनों ने अपनी दुनिया उजड़ जाने के बावजूद नफ़रत और हिंसा करने वालों को संदेश दिया है कि इस देश की एकता अखंडता को बड़ी से बड़ी साज़िशें भी कमज़ोर नहीं सकतीं। जब तक इस देश में हिमांशी और सरताज जैसी सकारात्मक सोच रखने वाले लोग हैं तब तक ना तो सरहद पार से आने वाले आतंकी इस देश को तोड़ पाएंगे, और ना ही देश में व्याप्त फ्रिंज एलिमेंट्स आपसी सौहार्द खत्म कर पाएंगे। क्योंकि ऐसी सोच वाले लोग हिंदोस्तान में सिर्फ बसते नहीं हैं बल्कि हिंदोस्तानियत को जीते हैं।

(लेखक पत्रकारिता से जुड़े हैं)

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