असम में हुए नए परिसीमन को लेकर ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने कांग्रेस पार्टी से गंभीर सवाल किए हैं।
एआईयूडीएफ के मुताबिक़, कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई का कहना हैं कि निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से एआईयूडीएफ को फायदा हुआ हैं, हालांकि सच्चाई यह हैं कि, मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटें पहले के मुताबिक़ 32-33 से घटकर 22 हो गई हैं।
इस संबंध में कांग्रेस पार्टी ने ना तो कोई बयान दिया और ना ही आपत्ति दर्ज़ कराई. जबकि कांग्रेस पार्टी और उसके ‘सहयोगियों’ ने अन्य समुदायों और क्षेत्र के लिए चिंता दिखाई हैं, आपको यह मुद्दा उठाने से कौन रोक रहा है?
मौलाना बदरुद्दीन अजमल का कहना हैं कि, हमारे विधायक दल के नेता हाफ़िज़ बशीर अहमद, वरिष्ठ नेता सिराजुद्दीन अजमल और कुछ अन्य विधायकों द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए निर्वाचन क्षेत्रों को इस परिसीमन से पूरी तरह से हटा दिया गया है. तो इस परिसीमन से हमें कैसे मदद मिली?
अब तक AIUDF के पास संगठनात्मक ताकत थी और उसने 3 संसदीय क्षेत्रों – धुबरी, बारपेटा और करीमगंज में जीत हासिल की थी. बारपेटा का पुनर्गठन इस तरह किया गया है कि एआईयूडीएफ कभी वहां चुनाव लड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकती. फिर परिसीमन से एआईयूडीएफ को कैसे मदद मिली?
असम कांग्रेस ने केवल मीडिया पर परिसीमन का विरोध किया है, तथ्य यह है कि वे इस मुद्दे को किसी भी उचित मंच पर उठाने में विफल रहीं हैं जबकि एआईयूडीएफ ने परिसीमन की प्रक्रिया के खिलाफ आपत्ति के साथ साथ माननीय सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया हैं।
तथ्य यह है कि भाजपा अपने लाभ के अनुसार परिसीमन कर सकी, यह पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की विफलता और कार्यों के कारण है. लेकिन कांग्रेस का कोई भी नेता इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा. उनका सबसे आसान खंडन भाजपा की आलोचना करते हुए एआईयूडीएफ को घसीटना है।
कांग्रेस सरकार ने 2008 में परिसीमन अधिनियम, 2002 में संशोधन किया और धारा 10ए जोड़ी और 14/01/2008 से असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में परिसीमन रोकने की शक्ति भारत के राष्ट्रपति को सौंप दी. इसके मुताबिक राष्ट्रपति ने इन राज्यों में परिसीमन रोक दिया था. इसके बाद कांग्रेस सरकार ने फिर से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में संशोधन किया और 17/04/2008 से राष्ट्रपति के हाथ में परिसीमन शुरू करने की शक्ति सौंपने वाली धारा 8 ए जोड़ दी और चुनाव आयोग को सर्वोच्च शक्ति और अधिकार प्रदान किया गया।
अब जब परिसीमन ईसीआई द्वारा किया जाता है, तो परिसीमन आयोग के बजाय सत्तारूढ़ व्यवस्था के पिंजरे में बंद तोते के रूप में कार्य करता है. यह कांग्रेस सरकार ही थी जिसने पक्षपाती चुनाव आयोग को ऐसी शक्ति प्रदान की और अब कांग्रेस घड़ियाली आंसू बहा रही है।
हम सुप्रीम कोर्ट में हमारे द्वारा दायर मामले के नतीजे की प्रतीक्षा कर रहे हैं, एपीसीसी ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया है और परिसीमन को स्वीकार कर लिया है. इसके अलावा कांग्रेस के ‘विश्वसनीय सहयोगी’ खुद कह रहे हैं कि मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस ने परिसीमन के विरोध में कुछ नहीं किया।