झूट को किसी भी ज़माने और किसी भी धर्म में पसन्द की नज़र से नहीं देखा गया है। हर इन्सान झूट को सबसे बड़ा गुनाह और महापाप ही समझता है। यहाँ तक कि झूट बोलनेवाला भी इसे जुर्म ही मानता है।
चोरों और डाकुओं तक की दुनिया में झूट बोलने की सज़ा मौत है। मगर इसे देश का दुर्भाग्य कहिये कि धर्म-प्रधान देश के उच्च सदन में एक मन्त्री महोदय ने इतना सफ़ेद झूट बोला है कि सफ़ेद रंग भी शर्म से पानी-पानी हो गया है। इबलीस भी दाँतों तले उँगली दबाकर भाग गया है। उसने अपने शागिर्दों को बीजेपी के मंत्रियों की शागिर्दी अपनाने का मशवरा दिया है।
मन्त्री महोदय ने जिस कमाल की ढिटाई से कहा है कि “देश में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई है” इससे उम्मीद है कि आगे वे यह भी कह सकते हैं कि देश में कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई।
आरएसएस के बारे में मेरा विचार था कि इसके कारसेवक बड़े उसूल-पसन्द होते हैं, वे अपने मक़सद को हासिल करने के लिये बेगुनाहों की लिंचिंग कर सकते हैं, ख़ुदा के घरों को गिरा सकते हैं, आग लगा सकते हैं, फ़सादी हो सकते हैं, मगर वे झूट नहीं बोल सकते, लेकिन पिछले सात सालों में मोदी सरकार ने संघ की उसूल-पसन्दी की पोल खोल कर रख दी है।
मोदी जी ख़ुद भी दुनिया के सबसे बड़े झूटे साबित हुए और उनके मन्त्री भी। सत्ता में रहते हुए प्रधानमन्त्री की ज़बान से कितनी ही बार झूट सुनने का सौभाग्य मिला। कभी इतिहास के हवाले से, कभी भूगोल के हवाले से। झूटे वादे करना तो एक ऐसा गुण है जो लगभग सभी नेताओं में पाया जाता है मगर झूट बोलने का गुण तो केवल मोदी सरकार में ही पाया जाता है।
कभी कहते हैं कि रविन्द्र नाथ टैगोर शान्ति निकेतन में पैदा हुए थे जबकि शान्ति निकेतन की बुनियाद ख़ुद टैगोर ने अपनी पैदाइश के लगभग चालीस साल बाद रखी थी। कभी कहते हैं कि देश में कोई डिटेंशन सेण्टर नहीं है। जबकि आसाम में हज़ारों लोग इन सेंटर्स में जहन्नम की ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं।
पुलवामा हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक आज तक पहेली बनी हुई है। चीन के साथ सीमावर्ती विवाद के बारे में भी प्रधानमन्त्री जी ने किसी चीनी सिपाही के भारतीय सीमा में घुसने का उस समय खण्डन कर दिया था जिस समय चीनी फ़ौजियों ने कई सुरक्षा चौकियों पर क़ब्ज़ा कर रखा था।
प्रधानमन्त्री के इन झूटे बयानों के साथ मन्त्री महोदय का बयान झूट के सिलसिले की एक कड़ी है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री के राज्य सभा में दिए गए इस झूटे बयान पर देश की छवि को दाग़ लगा है। कौन नहीं जानता कि कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में एक क़ियामत बरपा कर दी थी।
लाखों इन्सान मौत का शिकार हो गए थे, शमशान घाटों में टोकन बँट रहे थे, अन्तिम संस्कार की परेशानियों से घबराकर लोगों ने अपने प्यारों की लाशें गंगा में बहा दी थीं, जलाने के बजाय दफ़ना दी थीं।
ऑक्सीजन की कमी पर पूरे देश में एक हंगामा बरपा था। दिल्ली के मुख्यमन्त्री की प्रतिदिन प्रेस कॉन्फ़्रेंस का मुद्दा केवल ऑक्सीजन की कमी ही था। लोग ऑक्सीजन के लिये मारे-मारे फिर रहे थे। भारत का बच्चा-बच्चा ऑक्सीजन की कमी पर मातम कर रहा था। फिर किस तरह केन्द्रीय मन्त्री ने यह बयान दिया।
अप्रेल के तमाम अख़बारों की सुर्ख़ियाँ पुकार-पुकारकर ऑक्सीजन की कमी का पता दे रही थीं, पूरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चीख़-चीख़ कर ऑक्सीजन की कमी का ऐलान कर रहा था, लेकिन हमारे स्वास्थ्य मन्त्री को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
ऑक्सीजन की कमी पर अदालतें तक नाराज़ थीं, मगर मन्त्री महोदय को इन बातों से क्या मतलब। क्या मन्त्री का झूटा बयान मीडिया, पत्रकारिता और अदालत का अपमान नहीं है। क्या मन्त्री महोदय अदालत की टिप्पणियों को भी झुटलाएँगे?
इलाहाबाद हाई कोर्ट में 4 मई को जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की दो जजों की बेंच ने कहा कि “हमें यह कहते हुए बहुत ही तकलीफ़ महसूस हो रही है कि अस्पतालों में केवल ऑक्सीजन सप्लाई न होने के कारण कोविड-19 रोगियों की मृत्यु हो रही है, जो कि एक आपराधिक काम है और उन लोगों के द्वारा ‘नरसंहार’ से कम नहीं है, जिनको यह काम सौंपा गया है। वे तरल मेडिकल ऑक्सीजन की मुसलसल ख़रीदारी और सप्लाई चैन को यक़ीनी बनाएँ।”
इससे पहले 26 अप्रेल को दिल्ली हाई कोर्ट ने केजरीवाल सरकार पर फिटकार लगाते हुए कहा कि “ऑक्सीजन रिफ़िलर्ज़ के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिये। साथ ही अदालत ने कहा कि यह वक़्त लोगों के साथ गिद्धों की तरह सुलूक करने का नहीं है।
क्या मन्त्री महोदय इस बात से भी इनकार कर देंगे कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा था और सुप्रीम कोर्ट ने बाक़ायदा ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी बना दी थी।
झूट बोलने के लिये भी तिनके का सहारा लिया जाता है। रस्सी का साँप बनाया जा सकता है। आँकड़ों में हेरा-फेरी की जा सकती है। हालाँकि यह सब भी झूट है और ‘राम’ का नाम लेनेवालों से इसकी भी उम्मीद नहीं की जा सकती, मगर उच्च सदन में किसी मन्त्री का बे-सर, पैर का झूट बोलना भारत का अपमान है।
अगर ऑक्सीजन की कमी नहीं थी और लोग ऑक्सीजन की कमी से नहीं मर रहे थे तो सारी दुनिया से ऑक्सीजन क्यों माँगी जा रही थी। क्यों विश्व गुरु का मुखिया भीख का कमण्डल लेकर खड़ा हो गया था।
सऊदी अरब, क़ुवैत, बहरैन, रोमानिया, बेल्जियम, उज़्बेकिस्तान, रूस, हांगकांग, और UK इत्यादि से मदद के नाम पर आनेवाली ऑक्सीजन क्यों क़बूल की जा रही थी।
ऑक्सीजन की कमी के कारण भारत की “मेक इन इंडिया” और “आत्म निर्भर भारत” की पोल खुल गई थी। लेकिन मन्त्री के झूट ने जो कलंक लगाया है उसे मिटाने की कोई सूरत इसके सिवा नज़र नहीं आती कि मन्त्री महोदय को बर्ख़ास्त कर दिया जाए और प्रधानमन्त्री जनता से माफ़ी माँगें।
इस बयान ने न केवल देश की छवि ख़राब की है बल्कि मरनेवालों के परिजनों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। कितनी तकलीफ़ हुई होगी उन लोगों को जिन्होंने अपने रिश्तेदारों को ऑक्सीजन की कमी की वजह से खो दिया है।
रूहों की दुनिया में आत्माएँ भी इस बयान पर हैरत और ताज्जुब से एक दूसरे का मुँह तक रही होंगी। इस बयान के बाद मरनेवालों के परिजन किस मुँह से किसी मुआवज़े की माँग करेंगे?
गोदी मीडिया ने इस बयान पर अपनी आदत के मुताबिक़ कोई ख़ास नोटिस नहीं लिया है। अलबत्ता ग़ैर-जानिबदार मीडिया को इस मुद्दे को उठाए रखना चाहिये। यह बयान कोई मामूली बयान नहीं है, बल्कि इस बयान से केन्द्र सरकार और संघी मानसिकता की नैतिक गिरावट का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है।
नैतिक मूल्य ही इन्सान को इन्सान कहलाने का अधिकार देते हैं। अगर नैतिकता ही न रहे तो इन्सान कहलाने का कोई हक़ नहीं है। इस अवसर पर वतनी भाइयों के उस गरोह को भी अपने ऊपर ज़रूर ग़ौर करना चाहिये जो मोदी सरकार की हर समय तरफ़दारी करता रहता है। इसलिये कि ऑक्सीजन की कमी से मरनेवालों में उनके रिश्तेदार भी शामिल हैं।
संघ को भी अपने प्रशिक्षण कार्य पर ग़ौर करना चाहिये कि उसके प्रशिक्षण प्राप्त मन्त्री किस प्रकार का रोल अदा कर रहे हैं, इससे पहले करप्शन और यौन-शोषण के आरोप भी संघी वज़ीरों पर लगते रहे हैं और कई लोगों पर मुक़दमे चल रहे हैं।
अदालतों से भी अपील है कि वे इस बयान को अदालत का अपमान मानते हुए मन्त्रियों पर उचित कार्रवाई करें। समाज के बुद्धिजीवी वर्ग की ज़िम्मेदारी है कि वह झूटे मन्त्रियों को हटाए जाने की आवाज़ उठाए।
मुझे ख़ुशी है कि हरदोई ज़िले में गोपा मऊ सीट से बीजेपी के विधायक श्याम प्रकाश ने इस बयान का यह कहते हुए खण्डन किया है कि “हज़ारों लोगों ने ऑक्सीजन की कमी के कारण तड़प-तड़प कर जान दी है” मुझे उम्मीद है कि कुछ और पवित्रात्माएँ भी श्याम प्रकाश का साथ देंगी। मेरी मोदी जी से अपील है कि झूट बोलना और सुनना छोड़ दें, झूट की जड़ें बहुत गहरी नहीं होतीं, झूट पर क़ायम सत्ता हवा के हलके से झोंके से भी गिर सकती है।
ख़ुदा के वास्ते इतना तो झूट मत बोलो।
कहीं न टूट पड़े आसमान झूटे पर ॥
(यह लेखक के अपने विचार है लेखक कलीमुल हफ़ीज़ एआईएमआईएम दिल्ली के अध्यक्ष है)