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साल-दर-साल बेहद संगठित और सुनियोजित तरीके से हिंसक और दंगाई हिंदुत्ववादियों ने रामनवमी को हाईजैक कर लिया है: स्वाति मिश्रा

रामनवमी पर भारत के कई राज्यों में हुए हिंसक दंगों को लेकर पत्रकार स्वाति मिश्रा ने अपनी राय रखते हुए कहा है कि, साल-दर-साल बेहद संगठित और सुनियोजित तरीके से हिंसक और दंगाई हिंदुत्ववादियों ने रामनवमी को हाईजैक कर लिया है. किसी के निजी गोदाम में तरावीह पढ़ने पर विरोध करने वाले और इस विरोध का समर्थन करने वाले ज़्यादातर लोग तर्क दे रहे थे कि ये नए रिवाज़, नए प्रचलन क्यों. नमाज़ ही पढ़ना है तो घर बैठकर पढ़ो, अकेले पढ़ो, जुटान जमाकर पढ़ने की क्या ज़रूरत?

जबकि तरावीह पढ़ने वाले किसी मंदिर पर चढ़कर इस्लामी झंडा नहीं फहरा रहे थे. ना किसी मंदिर के आगे जुटकर हिंदुओं के लिए उनके धर्म के लिए अपमानजनक और भड़काऊ नारे लगा रहे थे।

मगर हज़ारों-हज़ार हिंदुत्ववादी अब हर साल मंसूबा बनाकर, पहले से इरादा बांधकर रामनवमी पर बिलकुल यही सब कर रहे हैं. कई जगह तलवार, बंदूक भी दिखती हैं. ऐसी शोभायात्राएं और हिंसक जुलूस क्या रामनवमी का पारंपरिक हिस्सा रही हैं? नहीं, एकदम नहीं. लेकिन बीते कुछ सालों से शहर-शहर ऐसे जुलूस निकालना रामनवमी का मुख्य आकर्षण बन गए हैं।

ये धर्म नहीं, धार्मिक आस्था नहीं, ये ताकत आज़माइश और उकसाने, इंच-इंच कर हदों से बढ़ते जाने का आयोजन है. मोडस ऑपरेंडी दिखती है कि मुसलमानों को उकसाओ, ताकि कोई कुछ जवाबी हरकत करे, फिर उसको हिंदू धर्म पर हमला बताकर पेश करो।

मैं चुप रहूं. आप चुप रहें. सहूलियत है हमारी कि हम चुप रह सकते हैं. हमारा सीधे से कुछ दांव पर नहीं लगा, तो हम चुप रहना अफोर्ड कर सकते हैं. विपक्ष भी चुप रहना अफोर्ड कर ही पा रहा है क्योंकि उसको पता है कि मुसलमान जाएगा कहां, वोट तो देगा ही, चाहे वो उनके मुद्दे उठाएं, ना उठाएं।

तो बहुसंख्यक का दुलारा बनने की चाह में वो भी ज़्यादातर चुप ही रहते हैं. लेकिन जिनके साथ हो रहा, जिनकी आस्था, खानपान, त्योहार, पहनावा, कारोबार, काम-धंधे पर बात हो, वो क्या करें? वो कहां जाएं?

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