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सम्पादकीय

त्यौहारों में नफरत फैलाने का धंधा कब तक चलेगा?

कल ईद थी तो स्वाभाविक था कि कट्टर हिंदुत्व के मानने वालों के घर परशुराम जयंती या अक्षय तृतिया मनाई ही गई होगी। वैसे ही जैसे क्रिसमस पर गुड गवर्नेंस डे और तुलसी पूजन दिवस मनाया जाता है। वैसे ही जैसे वैलेंटाइन्स डे पर मातृ पितृ पूजन दिवस मनाया जाता है।

पिछले कुछ सालों से 31 दिसम्बर को ये लोग अचानक से कहने लगे कि हम तो अपना वाला नया साल मनाएंगे। मनाओ यार, कौन रोक रहा है? मुझे इन बातों से कोई परेशानी नहीं है।

कल प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के हर बड़े नेता ने ईद के साथ बाकी पर्वों की भी बधाई दी। जिसने नहीं दी, उसने गालियां सुनीं और फिर बधाई दी। जाहिर है बहुसंख्यक भावनाओं का पूरा ध्यान रखा गया। ऐसा लग रहा था कि सबने डर के मारे बधाई दी हो। मुझे यह बहुत अजीब लगा। सबसे अजीब प्रधानमंत्री का डर लगा। यह फ्रेकेंस्टीन मॉन्स्टर तो उन्होने ही ने पैदा किया है। हिन्दूओं के मन में इस हीन भावना और द्वेष को उन्होंने ही भरा है। शायद यह उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक विरासत होगी। “ईद पर लाईट आती है, तो दिवाली पर क्यों नहीं आती,” ऐसे झूठ बोलकर ही तो उन्होंने लोगों के मन में दूसरे धर्मों के त्यौहारों के खिलाफ़ ज़हर बोया है।

कई सालों से कहा जा रहा है कि असली इतिहास हिन्दूओं से छिपाया गया है। इसके साथ ही मिथ्य और झूठ को इतिहास बनाकर परोसने का सिलसिला शुरु हुआ। पहल भाजपा ने की लेकिन अब यह मक्कारी सब कर रहे हैं। सोचिए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, जिन्हें काफ़ी लिबरल समझा जाता है उन्होंने कुछ दिन पहले महाराणा प्रताप को बड़ा दिखाने के चक्कर में उन्हें साढ़े सात फीट लंबा कर दिया और उनके हथियारों का वजन 208 किलो बताया।

सिसोधिया ने ऐसे ही लोकसभा चुनाव में आतिशी की “जाति” बताकर उन्हें ग्लोरिफाई किया था। केजरीवाल ने भी इसी नाते दिल्ली में सरकारी पैसे से पिछ्ले साल लक्ष्मी पूजा करवाई और कहा कि यह पूजा दिल्ली के 2 करोड़ लोग साथ करेंगे। मैं जहां तक जनता हूं दिल्ली में कई लाख लोग नास्तिक हैं और कई लोग दूसरे धर्मों के। कल ईद पर दो करोड़ लोगों को केजरीवाल ने नमाज क्यों नहीं पढ़वाई?

मोदी की अयोध्या भूमि पूजन के बाद केजरीवाल के मन का राम भक्त भी जाग उठा है। तभी 2015 और 2020 के उनके अयोध्या विवाद पर स्टैंड में ज़मीन और आसमान वाला फर्क आया है। उनके नेताओं को दिल्ली के अंदर “जय श्री राम” बोलने में डर लग रहा है। मैं हैरान नहीं हूं। मेरे लिए ये सब पोटेंशियल कपिल मिश्रा हैं। कहां कल तक भीड़ हिंसा के विरुद्ध मानव सुरक्षा कानून की बात करते थे, आज “हिंदू खतरे में हैं” का झूठ बोलते हैं।

छोड़िए, हम कल के ट्वीट्स पर वापस आते हैं। आपने अगर ध्यान दिया हो तो इसी तरह हर “विदेशी” पर्व पर हिंदुओं का कोई पुराना या नया त्यौहार पड़ ही जाता है। यह कहा जाता है कि लोग हिंदुओं के त्यौहारों की तरफ़ इंटोलेरेंट हैं, जबकि पूरी दुनिया के सामने है कि ईद और क्रिसमस पर भाजपा का आईटी सेल कितने घिनौने ट्रेंड करता है।

मुसलमानों में और ईसाइयों या सिखों में नए त्यौहार पैदा करने की कोई होड़ नहीं दिखती है और न ही दूसरों के त्यौहारों में गालियां बकने और अभद्रता करने की। इस बार ईद पर सरकार का विरोध करने वाली मुसलमान महिलाओं की तस्वीरें चुराकर उनकी बोली लगाई गई। इस हिंसा को ईद की बधाई देने का एक तरीका बताया गया। दुख की बात यह है कि ऐसा हज़ारों कट्टर और बेरोजगार हिंदू मर्द कर रहे हैं।

यह हीन भावना पता नहीं आगे क्या क्या रंग दिखाएगी। जो भी हो इससे इन्हें सुकून और खुशी तो कभी नहीं मिलेगी। बस दूसरों की खुशी और सुकून ज़रूर खत्म होगा। भारत के विपक्षी नेताओं ने सबसे बड़ा झूठ यह बोला है कि अगर भाजपा की बातों को खुलकर काउंटर करेंगे तो हिंदू वोटर पोलराइज हो जाएंगे। इस झूठ के साथ जो चुप्पी पसरी उसने ही इस नफरत को नॉर्मलाइज किया है।

नोट: अभी ऐसे करोड़ों लोग हैं जो इस पागलपन से दूर हैं लेकिन आप इससे मुंह नहीं मोड़ सकते। आपको इससे लड़ना ही होगा। राजनीतिक विपक्ष को भी सच कहने के लिए मजबूर करना होगा।

(यह लेखक के अपने विचार है लेखक अलीशान जाफरी स्वतंत्र पत्रकार है)

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