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सम्पादकीय

हिन्दोस्तानी मुसलमानों की जान इतनी क़ीमती नहीं है कि उनके क़ातिलों को सज़ा हो और वो भी सज़ा-ए-मौत

इख़बार की एक कटिंग वायरल हो रही है. जिसपर मोटे लफ़्ज़ों में लिखा हुआ है- ‘बंगाल के बाद झारखंड में भी मॉब लिंचिंग से जान गई तो दोषियों को सज़ा-ए-मौत’

अगर ये बिल झारखंड विधानसभा में पास होता है तो झारखंड हिन्दोस्तान का चौथा ऐसा सूबा होगा जहां मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ क़ानून होगा।

पहले जिन तीन राज्यों में यह क़ानून बना है वहां यह क़ानून सिर्फ़ काग़ज़ी है। जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मुल्क के सभी सूबों को मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने का हुक्म दिया था। जिसके कुछ ही महीने बाद 2018 में ही मणिपुर विधानसभा में मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने का बिल पास हुआ और क़ानून बन गया।

सुप्रीम कोर्ट के हुक्म के एक साल बाद अगस्त 2019 में राजस्थान की गहलोत सरकार ने भी मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने का बिल विधानसभा में पेश किया और बिल आसानी से पास हो गया, क़ानून भी बन गया। उसी अगस्त 2019 में ही पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार भी मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ विधानसभा में बिल लेके आई जो आसानी से पास हो गया। इस तरह यह तीनों राज्यों में मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ नाम-निहाद क़ानून बन गया।

अब आप अपना फ़ोन लीजिए और गूगल कीजिए और पढ़िये कि यह क़ानून बनने के बाद इन तीनों सूबों में कितने बे-गुनाह मुसलमानों की लिंचिंग हुई है। आप ख़ुद सोचिये क्या अगस्त 2018-19 के बाद से लेकर अबतक इन तीनों राज्यों में मॉब लिंचिंग नहीं हुई? और अगर हुई तो कितने क़ातिलों को उम्र-क़ैद या मौत की सज़ा हुई?

अगस्त 2019 में पश्चिम बंगाल में मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ क़ानून बनने के महज़ दस दिनों के बाद ही पांच मॉब लिंचिंग जैसा मआमलात हुआ था। जिनमें दो मुसलमानों की मौत भी हुई थी। उसी बंगाल में लिंचिंग के ख़िलाफ़ क़ानून बनने से एक महीने पहले भी 4 बेगुनाहों की लिंचिंग/क़त्ल हुआ था। लेकिन सज़ा के नाम पर वही हुआ जो होता आया है।

मेरा मतलब ये है कि आप ख़ूब तारीफ़ें कीजिए। लंबी लंबी पोस्टें लिखिये लेकिन जिन सूबों में ये क़ानून पहले से है वहां की हक़ीक़त भी लोगों को बताइये। ताकि लोग समझ सकें।

हिन्दोस्तानी मुसलमानों की जान इतनी क़ीमती नहीं है कि उनके क़ातिलों को सज़ा हो और वो भी सज़ा-ए-मौत।

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी सोशल एक्टिविस्ट हैं)

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